21वीं सदी में विकासशील भारत के लिए दहेज प्रथा एक कोढ़ का काम कर रही है! दहेज प्रथा हमारे देश के लिए एक कलंक है जो कि दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रही है यह फोड़े की तरह इतना नासूर हो गया कि अब बहू बेटियां की जान भी लेने लगा! दहेज प्रथा का चंगुल हर जगह व्याप्त है! इसकी जड़ें इतनी मजबूत हो गई है कि अमीर हो या गरीब हर वर्ग के लोग को जकड़ रखा है! दहेज प्रथा के खिलाफ भारत सरकार ने कई कानून भी बनाए हैं लेकिन उन कानूनों का हमारे रूढ़िवादी सोच वाले लोग पर कोई असर नहीं होता है!
वह दहेज लेना एक अभियान का विषय मानते हैं!
जिसको जितना ज्यादा दहेज मिलता है वह उतना ही गर्व करता है
और पूरे गांव में इसका ढिंढोरा पीटता है! जबकि दहेज गर्व का नहीं शर्म का विषय है वर पक्ष की ओर से वधू पक्ष को विवाह करने के लिए किसी भी प्रकार के रुपया गाड़ी समान अन्य कोई विरासत की वस्तुओं मांगना दहेज प्रथा के अंतर्गत आता है !
दहेज लेना या देना दोनों भारतीय कानून के तहत अपराध की श्रेणी में आता है पुरुष प्रधान देश होने के कारण हमारे देश में महिलाओं का शोषण किया जाता है! उसी शोषण का दहेज प्रथा एक रूप है!
दहेज लेना लोगों में एक गर्व का विषय बन चुका है, वह सोचते हैं कि अगर हम ने दहेज नहीं लिया तो समाज में हमारी कोई इज्जत नहीं रह जाएगी इसलिए लड़के वाले लड़कियों से जितनी ज्यादा हो सके उतनी दहेज की मांग करते हैं पुरानी रीति रिवाज की ढाल लेकर इसे एक विवाह का रिवाज बना दिया गया है,
Thak kha
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